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गुटबाजी और अंतर्कलह से जूझ रही कांग्रेस

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गुटबाजी और अंतर्कलह से जूझ रही कांग्रेस लम्बे वक्त से गुटबाजी और अंतर्कलह से जूझ रही धनबाद जिला कांग्रेस कमिटी विधानसभा चुनाव में भी इससे पीछा नही छूटता नज़र नही आ रहा है। लेकिन इस बार गुटबाजी नही बल्कि #धनबाद जिला के कांग्रेसी कार्यकर्ता और नेता अपने शीर्ष नेतृत्व के फैसले से नाराज़ है। इसका असर कांग्रेस प्रत्यासी Mannan Mallick for Dhanbad के जनसंपर्क में भी देखने के लिए मिल रहा है.. मन्नान के अपने समर्थकों को छोड़ दिया जाए तो.. कांग्रेस के पदाधिकारी, नेता और कार्यकर्ता मन्नान के जनसम्पर्क में नजर नही आ रहे है.. कांग्रेस प्रत्यासी मन्नान भी अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को छोड़ उन्हें मनाने में लगे है या उनपर भरोसा दिख रहे है जो वर्षो पहले बागी हो गए या जो कभी कांग्रेसी थे ही नही.. ● जब घर में स्वीकार नहीं तो धनबाद की जनता कैसे करेगी स्वीकार  मन्नान मल्लिक लगभग 30 वर्ष तक धनबाद कांग्रेस के अध्यक्ष रहे.. और छः बार विधायक का उम्मीदवार भी बनाया..धनबाद में मन्नान को नाम और पहचान दिलाई कांग्रेस से लेकिन मन्नान को उनके घर मे नेता मनाने के लिए तैयार नही है तो धनबाद की जनता कैसे धनब...
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झरिया विधानसभा की राजनीतिक हालात और चुनावी मुद्दों पर एक नजर.......... चुनावी मुद्दों कोयला और आग के ढेर पर बसा यह शहर तो अपने कोयले के लिए पूरे विश्व में प्रसिध्द है ही। जहां के कोयले से पूरा देश रौशन हो रहा है। लेकिन इस आग के ढेर पर रहने वालों के ईर्द-गिर्द यहां की राजनीति भी चलती है। फिर चाहें वो झरियावासियों के विस्थापन का मुद्दा हो या मुलभूत सुविधाओं की। कहते हैं कि जितना यहां की धरती में कोयला है उतना ही यहां की जनता में कभी भी आग और धरती के गर्भ में समा जाने का जहन में डर है। ना जाने कब किसका घर जमीन के अंदर समा जाए और पूरा का पूरा परिवार तबाह हो जाए। ये बातें हम अपने मन से नहीं कह रहे हैं। लोगों के जमीन में समा जाने और शव का तक पता नहीं चलने के सैकड़ों घटना इसका उदाहरण है। फिर उसके बाद बीसीसीएल और सरकारी प्रबंधन एक राग अलापती है वह है पुर्नवास। जिसका दंश जनता बेरोजगारी और भूखमरी से झेल रही है। ऐसे में अगर इलाके के विकास की बात करें तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी। क्योंकि आग के कारण झरिया रेलवे स्टेशन, आरएसपी कॉलेज, राज ग्राउंड स्थित सब्जी मंडी, फलमंडी एक- एक करक...
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चमकी बुखार का  मुजफ्फरपुर में पहले कुछ दिनों से लगातार इनसेफ्लाइटिस की खबर ग्रामीण क्षेत्र से आ रही थी। बीमारी का इलाज खोजना है तो डॉक्टरों पर सवाल उठाकर कुछ नहीं होगा। उनके पास करने को बहुत कुछ नहीं रहता है।हकीकत है कि जब मेडिकल कॉलेज मरीज आता है तो वह बहुत क्रिटिकल होता है। उसे बचाने के लिए डॉक्टर के पास दो से तीन घंटे ही होते हैं। ऐसे में अगर कई बच्चों की जान बच रही है तो इसके लिए डॉक्टर प्रशंसा के भी पात्र हैं। बीमारी की जड़ जाननी है तो उन गांवों को जाएं जहां से मरीज आ रहे हैं।गांवों में किसी मरीज के घर जाएं और उनके घर से सबसे करीब स्वास्थ्य केंद्र जाएं, सब पता चल जाएगा कि आखिर में असल बीमारी कहां है। जो बच्चे इस बीमारी से आ रहे हैं उनकी मेडिकल रिपोर्ट देखेंगे तो पता चलेगा कि अगर उन्हें इनसेफ्लाइटिस नहीं होगा तो कोई दूसरा बीमारी होगा। इतने कुपोषित भर पेट अच्छा खाना भर इस बीमारी को लगभग समाप्त कर सकता है। लेकिन हर बार मीडिया का फोकस मरने वाले बच्चों की संख्या काउंट करने में समाप्त होता है फिर बरसात होती है और बीमारी भी अगले साल तक स्थगित हो जाती है और मीडिया के लिए दूसरा अ...