झरिया विधानसभा की राजनीतिक हालात और चुनावी मुद्दों पर एक नजर..........
चुनावी मुद्दों
कोयला और आग के ढेर पर बसा यह शहर तो अपने कोयले के लिए पूरे विश्व में प्रसिध्द है ही। जहां के कोयले से पूरा देश रौशन हो रहा है। लेकिन इस आग के ढेर पर रहने वालों के ईर्द-गिर्द यहां की राजनीति भी चलती है। फिर चाहें वो झरियावासियों के विस्थापन का मुद्दा हो या मुलभूत सुविधाओं की। कहते हैं कि जितना यहां की धरती में कोयला है उतना ही यहां की जनता में कभी भी आग और धरती के गर्भ में समा जाने का जहन में डर है। ना जाने कब किसका घर जमीन के अंदर समा जाए और पूरा का पूरा परिवार तबाह हो जाए। ये बातें हम अपने मन से नहीं कह रहे हैं। लोगों के जमीन में समा जाने और शव का तक पता नहीं चलने के सैकड़ों घटना इसका उदाहरण है। फिर उसके बाद बीसीसीएल और सरकारी प्रबंधन एक राग अलापती है वह है पुर्नवास। जिसका दंश जनता बेरोजगारी और भूखमरी से झेल रही है। ऐसे में अगर इलाके के विकास की बात करें तो आपको निराशा ही हाथ लगेगी। क्योंकि आग के कारण झरिया रेलवे स्टेशन, आरएसपी कॉलेज, राज ग्राउंड स्थित सब्जी मंडी, फलमंडी एक- एक करके उठते चले गए हैं। यहां रोजगार के लिए नई योजनाओं की शुरूआत होना तो दूर की बात है बल्कि एक एक करके सभी उद्योग धंधे शिफ्ट होते चले गए हैं। वहीं बिजली- पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं की बात करे तो यहां लाखों जनता पानी के लिए आधी रात से ही जगे रहने को मजबूर हैं। एक तो नियमित जलापूर्ति नहीं होने से यहां की जनता त्रस्त है ही लेकिन रात में एक या दो बजे ही नले खुल जाने से लोग ठंड हो या बरसात पूरी रात पानी की आस में जगने को मजबूर हैं। सुबह 5 बजे ही जलापूर्ति बंद हो जाती है। जबकि बिजली की आंख-मिचौनी तो पूरे कोयलांचल में जगजाहिर है। ओपन कास्ट प्रोजेक्टस के उड़ने वाली धूल और हेवी ब्लास्टिंग इनके जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका है।
झरिया विधानसभा की राजनीतिक अतीत
इन्हीं समस्य़ाओं के साथ वर्षों से यहां चुनाव लड़े जाते रहें हैं। जिसमे सिंह मेंशन परिवार का विधायक सुर्यदेव सिंह की समय से ही अब तक झरिया सीट पर दबदबा रहा है। सुर्यदेव ने लगभग दो दशक तक य़हां राज किया। वो लगातार तीन बार 1977 से ही यहां के विधायक रहे। जिसके बाद हार्ट अटैक से उनकी मृत्यु हो गई। उसके बाद सिंह मेंशन के शासन में कुछ समय के लिए विराम लग गया. हालांकि 1991 में जब आरजेडी के नेता राजू यादव की गोली मारकर मुगलसराय स्टेशन पर हत्या कर दी गई थी। इस हालात को भुनाने के लिए उनकी पत्नी आबो देवी को पार्टी ने टिकट दिया। उस चुनाव में झरिय़ा के लोगों की सहानुभूति राजू यादव की विधवा के साथ थी। जिसका फायदा यह हुआ कि आबो देवी भारी मतो से विजय हुई। वो लगातार दो बार विजय होकर झरिया की विधायक बनी। बाद में तत्कालीन बिहार में उन्हें मंत्री भी बनाया गया। उनके विजय रथ को रोकने का काम पूर्व विधायक सुर्यदेव सिंह के भाई और सिंह मेंशन के ही बच्चा सिंह ने किया। तब से लगातार लगातार इस सीट पर सिंह मेंशन का ही राज रहा है। 2004 और 2009 में सुर्यदेव सिंह की पत्नी कुंती देवी भाजपा के टिकट पर जीतकर यहां से विधायक रही। अपने पिता के राजनीतिक विरासत को संभालते हुए माता कुंती के बाद 2014 में झरिया से चुनाव लड़े संजीव सिंह।जहां उनका मुकाबला अपने ही चचेरे भाई नीरज सिंह से था। संजीव सिंह को 74062 वोट मिले थे. वहीं नीरज सिंह को कुल 40370 वोट मिले थे. 33 हजार से भी अधिक मत से नीरज सिंह को हार का मुंह देखना पड़ा और संजीव सिंह विधायक बने।
लेकिन बहुत ही कम समय में कोयलांचल की राजनीति में उभरे एक सितारे को जो लोगों के दिलों में अपनी एक अच्छी छाप छोड़ चुके थे। कोयलांचल में एक जाने-माने नेता के रूप में उभर रहे नीरज सिंह की धनबाद के सरायढेला के पास 70 से अधिक गोलियां मारकर निर्मम हत्या कर दी गई। जिसके हत्या के आरोप में विधायक संजीव सिंह लगभग दो सालों से जेल में बंद हैं।
इन्हीं परिस्थितियों में 2019 के विधानसभा चुनाव में मोर्चा संभाल रही हैं दोनो ही परिवार की बहुएं।एक तरफ नीरज सिंह की पत्नी पूर्णिमा सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनावी मैदान में है। तो दूसरी ओर जेल में बंद संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह अपनी सास-ससुर और पति की विरासत संभालने भाजपा से चुनाव लड़ रही है। ऐसे में यह चुनाव झरिया के लिए दिलचस्प इसलिए हो जाता है क्योंकि एक तऱफ पूर्णिमा सिंह अपने पति के सपनो और नाम पर लोगों से वोट मांग रही है। जिससे लोगों की सहानुभूति उनके साथ जुड़ती दिख रही है। तो दूसरी तरफ रागिनी सिंह अपने पति और भाजपा के नाम पर लोगों से समर्थन की उम्मीद लगाई हुई हैं।
इन्हीं सब के बीच विधायक सजीव सिंह ने भी कोर्ट से चुनाव लड़ने की अनुमति प्राप्त कर ली है।वो 25 नवंबर को नामांकन करेंगे। हालांकि कयास लगाए जा रहें हैं कि वो ऐसा इसलिए कर रहे हैं क्य़ोंकि अगर किसी पेपर या अन्य चीजों के कारण रागिनी सिंह के चुनाव लड़ने में बाधा हो तो यह परिवार का एक उम्मीदवार चुनाव लड़ सके। क्य़ोंकि पिछले चुनाव में कुंती सिंह ने भी ऐसा ही किया। जिसमें नामांकन करने के बाद उन्होंने चुनाव से पहले अपना नाम वापस ले लिया था।
इधर जेवीएम से रमेश राही उम्मीदवार हैं और आजसू से आबो देवी के पुत्र चुनाव लड़ने वाले हैं। इन सब के बावजूद जो मुख्य मुकाबला है वो है रागिनी सिंह और पूर्णिमा सिंह में है। अब देखना है कि दो बहुओं में बाजी कौन मारता है।
क्या कोयलांचल आबो देवी की ही तरह एक बार फिर सहानुभूति के
आधार पर इतिहास दोहरायेगी। पूर्णिमा सिंह अपने पति के हत्या के बाद झरियावासियों के विश्वास बनेगी। य़ा एक बार फिर से सिंह मेंशन के पास ही यह सीट रहती है।
सभार
विकास कुमार पांडेय
क्या कोयलांचल आबो देवी की ही तरह एक बार फिर सहानुभूति के




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